जिंदगी की राह मै, में कई बार टूटा हू
जब लगा की कुछ भी नहीं है ॥
जब राह मै पैर डगमग़ाये तो लगा की
अब तो कोई सुर्य की कीरण नहीं है ॥
शाम भी ढल रही है , सुर्य भी बादलों मे कही छीपा है
फिर भी मे उठ खड़ा हूंगा, क्यों की उम्मीद का आखरी कण मुज मै मोजुद है||
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